आरती करने की विधि

आरती करने की विधि , आरती कैसे करें , कपूर की आरती , भगवान की आरती कैसे करें , आरती के नियम ,aarati kaise ghumaye , bhagwan ki arati ,

आरती करने की विधि (bhagwan ki arati ) – आरती हिंदू उपासना की एक विधि है। यह प्रभु आराधना का एक अनन्य भाव है। हम भगवान को अभिषेक, पूजन और नेवैद्य से मनाते हैं। अंत में अपनी श्रद्धा, भक्ति और प्रभुप्रेम की अभिव्यक्ति के लिए भाव विभोर होकर और व्याकुलता से जो पूजा करते हैं, उसे आरती कहते है।

आरती कैसे करें 

आरती, आर्त भाव से होती है। इसमें संगीत की स्वरलहरियां और पवित्र वाद्यों के  नाद से भगवान की आराधना की जाती है। मूलतः आरती शब्दों और गीत से नहीं. भावों से की जाने वाली पूजा है।

भगवान की आरती कैसे करें

पूजा के बाद आरती करने का महत्व इसलिए भी है कि यह भगवान के उस उपकार के प्रति आभार है जो उसने हमारी पूजा स्वीकार कर किया और उन गलतियों के लिए क्षमा आराधना भी है जो हमसे पूजा के दौरान हुई हो।

आरती के नियम (aarati kaise ghumaye)

आरती प्रायः दिन में एक से पांच बार की जाती है। इसे हर प्रकार के धार्मिक समारोह एवं त्यौहारों में पूजा के अंत में करते हैं। एक पात्र में शुद्ध घी लेकर उसमें विषा संख्या ( जैसे 3,5 या 7 ) में बत्तियां जला कर आरती की जाती है। इसके अलावा कर्पूर से भी आरती कर सकते हैं। सामान्य तौर पर पांच बत्तियां से आरती की जाती है. जिसे पंच प्रदीप भी कहते हैेे।

आरती कितने बार घुमानी चाहिए

आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से. दूसरी जल से भरे हुए शंख से, तीसरी धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवी साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग (मस्तिष्क, ह्रदय, दोनों कंधे, हाथ व घुटने) से।

आरती होने के बाद भक्तगण अपने दोनों हाथों को उलटा कर जोड़ लेते हैं व आरती पर घुमा कर अपने मस्तक को लगाते हैं। एक मान्यता अनुसार ईश्वर की शक्ति उस आरती में समा जाती है, जिसका अंश भक्त मिलकर अपने अपने मस्तक पर ले लेते हैं।

आरती का विज्ञान

आरती के प्रारंभ में शंखनाद, फिर चंवर डुलाना, कर्पूर और धूप से भगवान की आरती ग्रहण करना, यह सब परमात्मा द्वारा रची गई सृष्टि के प्रति अपने आभार और उसते वैभव का प्रतीक है। इस विज्ञान को हम समझें तो यह सृष्टि पंचतत्वों से मिलकर बनी है। आकाश, वायु, अग्रि, जल और पृथ्वी। इन पंचतत्व से हम भगवान को पूजते हैं। शंखनाद से आकाश तत्व के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। वायु तत्व की अभिव्यक्ति के लिए हम भगवान को चंवर डुलाते हैं। कर्पूर और धूप, साक्षात अग्रि के रूप में है। अग्रि पवित्रता, प्रकाश का प्रतीक भी है और संहार का भी।

 

पूजा में आरती का इतना महत्व क्यों है इसका समाधान स्कंदपुराण में मिलता है। कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की  विधि नहीं जानता, लेकिन सिर्फ आरती कर लेता है तो वहां भगवान उसकी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते हैं।

आरती करने का समय 

मंगला आरती  भगवान को सूर्याेदय से पहले उठाते समय।

श्रृंगार आरती   – पूजा करने के बाद ।

राजभोग आरती – दोपहर को भोग लगाते समय।

संध्या आरती  –  शाम को भगवान को उठाते समय।

शयन आरती रात्रि को सुलाते समय ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here