
बृहस्पति भगवान बुद्धि और विद्या के देवता माने जाते हैं। गुरुवार के दिन बृहस्पति भगवान की पूजा करने से सभी प्रकार के मनोवांक्षित फल प्राप्त होते हैं। ये देवताओं के गुरु हैं। इनकी पूजा से दामपत्य जीवन एवं सम्पूर्ण परिवार में सुख-शान्ति एवं सम्पन्नता रहती है और विवाह के लिए भी गुरुवार के व्रत का अनुष्ठान किया जाता है।
गुरुवार व्रत की विधि
व्रत की विधि
गुरुदेव की पूजा विधि-विधान से की जानी चाहिए। प्रात: काल नित्य क्रियाओं से निव्रत्त होकर पूजन करना चाहिए। गुरु के पूजन में पीली चीजें,पीले फूल,चने की दाल, मुनक्का,पीली मिठाई,पीले चावल,हल्दी आदि प्रयोग में लाना चाहिए और एकाग्रचित्त होकर मन वचन कर्म से शुद्ध होकर के भगवान की पूजा एवं प्रार्थना करनी चाहिए।
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गुरुवार व्रत की कथा
प्राचीन-काल की बात है। किसी राज्य में एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा राज करता था। वह प्रत्येक गुरुवार को व्रत करता और अनेकों प्रकार के सत्कर्म करता था परन्तु ये बातें उनकी पत्नी को अच्छी नहीं लगती थीं और राजा की पत्नी बड़ी नास्तिक थी। वह कोई भी सत्कर्म पुण्य अथवा भगवान की पूजा नही करती थी।
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एक समय राजा शिकार खेलने के लिए जंगल गए थे। घर पर रानी और नौकरानी ही थीं। उसी समय गुरुदेव साधु का रुप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा माँगने आये। जब गुरुदेव नें रानी से भिक्षा माँगी तो वह कहने लगीं , कि हे साधु महाराज मैं दान और पुण्य से परेशान हो गई आप कोई उपाय बतायें जिससे हमारा सम्पूर्ण धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रहूँ।
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गुरुदेव बृहस्पति जी नें कहा,हे देवी तुम बड़ी विचित्र हो,सन्तान,ऐश्वर्य,धन-सम्पत्ति आदि से कोई दुखी होता है क्या ? अगर अधिक धन है तो अच्छे कार्यो में लगाइये। गरीब कन्याओं का विवाह करें , विद्यालय आदि बनवायें तथा अनेक तरह से लोक-कल्याण करें।
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परन्तु साधु की इन बातो से रानी को कोई प्रसन्नता नहीं हुई तब साधु नें कहा,यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूँ तुम उसी तरह करना। गुरुवार के दिन घर को गोबर से लीपना अपने केश धोना और अपने पति से बाल कटवाने को कहना। भोजन में माँस-मदिरा का प्रयोग करना और कपड़ा धोने के लिए धोबी को देना। इस प्रकार 7 बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा सब धन वैभव नष्ट हो जाएगा।
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इतना कहकर साधु भेषधारी गुरुदेव बृहस्पति अर्न्तध्यान हो गए और साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल 3 गुरुवार ही व्यतीत हुए कि सब कुछ नष्ट हो गया औऱ यहाँ तक सारा परिवार भोजन के लिए तरसने लगा।
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एक दिन राजा नें रानी से कहा तुम घर पर ही रहो,मैं धन कमाने के लिए विदेश जा रहा हूँ। क्योंकि यहाँ पर सभी लोग मुझे जानते हैं इसलिए कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता,ऐसा कहकर राजा परदेश चला गया और जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता इस-तरह अपना जीवन व्यतीत करने लगा। उधर राजा के जाते ही रानी औऱ दासी दुखी रहने लगे।
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एक बार जब रानी औऱ दासी को 7 दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा तब रानी नें दासी को बुलाकर कहा- तुम पास में रह रही मेंरी बहन के घर जाओ वो ब़ड़ी धनवान है और कुछ धन ले आओ ताकि थोड़ा गुजर बसर हो जाएगा। दासी रानी की बहन के घर गई।
उस दिन गुरुवार था,रानी की बहन बृहस्पतिवार वृत की कथा सुन रही थी दासी नें रानी का संदेश सुनाया लेकिन उसने कोई उत्तर नहीं दिया और उसको क्रोध आया। दासी नें वापस आकर सारी बातें बताईं यह सुनकर रानी अपने भाग्य पर पश्चाताप करने लगी।
रानी की बहन नें सोचा कि मेंरी बहन की दासी आयी थी परन्तु मैं उससे नहीं बोली इससे वह बहुत दुखी हुई होगी। जब पूजन समाप्त हुआ तो वह अपनी बहन के घर आयी और बहन से बोलती है कि मैं भगवान गुरुदेव की पूजा कर रही थी और जब तक पूजा होती है तब तक कथा में किसी से बात नहीं की जाती।
रानी बोली बहन तुमसे क्या छिपाऊँ मेंरे घर में यहाँ तक खाने को अन्न भी नहीं,ऐसा कहते-कहते रानी की आँखे नम हो गयीं तब रानी की बहन बोली तुम बृहस्पति भगवान की पूजा किया करो जिससे तुम्हारे घर में सब कुछ हो जाएगा।
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पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अन्दर भेजा तो उसे सचमुच में अनाज से भरा हुआ एक कलश मिला और इसको देखकर के रानी बहुत आश्चर्यचकित हुई औऱ अपनी बहन से गुरुवार व्रत की विधि पूँछकर बृहस्पतिवार की कथा व्रत एवं पूजा करने का संकल्प ले लिया
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घर वापस आकर 7 दिन के बाद जब गुरुवार आया तो रानी और दासी नें बड़े भाव और श्रद्धा से और सम्पूर्ण विधि-विधान से भगवान का पूजन व्रत एवं कथा श्रवण किया इसलिए उनकी भक्ति देखकर गुरुदेव प्रसन्न हो गए और गुरु भगवान साधारण मनुष्य का रुप धारण कर सुन्दर पीला भोजन 2 थालो में दे गए और भोजन पाकर दासी और रानी दोनों प्रसन्न हुईं और भोजन ग्रहण किया।
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इस तरह से प्रत्येक गुरुवार को भगवान की पूजा और व्रत करने लगे औऱ पुन: सम्पत्ति,वैभव आदि से रानी सम्पन्न हो गई। रानी को समझाते हुए दासी कहती है,कि बड़ी मुसीबतों के बाद हमनें ये धन पाया है। इसलिए इसका कुछ प्रतिशत दान-पुण्य में खर्च करना चाहिए। ऐसा करने से धन की वृद्धि होती है और धन की प्राप्ति होती है।
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दासी की बात सुनकर रानी नें अपना धन शुभ कार्यो में खर्च करने लगी। जिससे पूरे शहर में यश फैलने लगा। इस-तरह से बृहस्पतिवार व्रत कथा को बड़ी श्रद्धा प्रेम के साथ सुननी चाहिए और बाद में प्रसाद वितरण कर स्वयं प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
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बोलिए,बृहस्पति भगवान की जय।
आचार्य पंण्डत के के.दि्वेदी