
छोटी सी उम्र में ….
माँ की कुछ रुपयों की लिपस्टिक ,
अपने होठों पर लगाकर ,
अपने बस्ते को बोझ की तरह ,
पीठ पर लटकाकर ,
छोटे भाई की उंगली पकड़,
और
बहन को कनिया में दबाकर
सरकारी स्कूल जाती ,
सरस्वती की मुस्कान में ।।
या
अल्हड़ सी उम्र में ,
बोर्ड का पेपर देने जाती,
कान में झुमकी वाले –
बड़े -बड़े नकली बालें पहन ,
अपना हल्का गुलाबी दुपट्टा ,
बिन हवा के ही जबर्न लहराती ,
साइकिल के पैडल तेज-तेज मार ,
आसमान छू लेने को आतुर ,
वैष्णवी के सतरंगी सपनों में ।।
या
सुबह-सुबह गोबर में भूसा मिला,
करीने से एकदम गोल उपले बनाकर ,
उन्हें अपनी हथेलियों की रेखाओं से सजाकर ,
जिन्हें कल कर देगी , खुद ही
चूल्हे की आग के हवाले ,
दीवार पर चिपकाती ,
दुर्गा के माथे की पसीने की बूंदों में ।।
या
मुँहअन्धेरे रोटी बनाकर ,
प्याज़-नमक साथ पोटली में बांध ,
शराबी पति परमेश्वर के साथ ,
निकलेगी मजदूरी की तलाश में ,
ढोएगी ईंटा-गारा -गिट्टी ,
पति के बराबर ही ,
पर मजदूरी लेगी आधी ,
बच्चों का पूरा पेट भरने को ,
फ़टे से पल्लू की गांठ में बंधी ,
लक्ष्मी की मजदूरी में ।।
उसके सतरंगी सपने और मुस्कान
पसीने की बूंदों से गुँथी
रोटी की पोटली
स्त्रीत्व के दिवस के शोर में
छोड़ जाएंगी एक भुरभुरा सा एहसास
फिर से…।।।

शिक्षिका एवं कवित्री