सोमवार के दिन का स्वामी सोम हैं और सोमवार को व्रत करने वालो को चाहिए कि दिन में निराहार रहे और रात्रि में एक बार भोजन करें। व्रती को चाहिए कि भक्ति भावना से सामर्थ्य के अनुसार भगवान शंकर पार्वती का पंचोउपचार एवं षोडशोपचार पूजन करें और कम से कम 16 सोमवार लगातार व्रत रखना चाहिए। इसके बाद कथा श्रवण करें ।

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सोमवार व्रत की कथा

प्राचीन काल की बात है कि एक नगर में एक वैश्य रहता था जो बड़ा ही धनवान तथा ऐश्वर्यवान था। इतनी सम्पन्नता होते हुए भी उसको कोई सन्तान नहीं थी। इस बात का उसे हमेशा दुख रहता था।

यद्धपि वह वैश्य भगवान शिव का परमभक्त था और भगवान पर विश्वास था कि भगवान शिव की कृपा से मेंरे पुत्र अवश्य होगा। इस तरह का विचार मन में रखकर बड़ी भक्ति भाव के साथ भगवान शिव की पूजा किया करता था।

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इस तरह के धार्मिक कार्यों में रथ देखकर मां पार्वती से नही रहा गया और वह शिव जी से बोली कि हे नाथ यह व्यक्ति बड़ी ही भक्तिभावना से आपका पूजन करता है फिर भी आप इसके दुख का निवारण क्यों नहीं करते तब पार्वती जी के वचनों को सुनकर शंकर जी बोले, हे देवी- नि:संतान होने का कारण इसके पूर्व जन्मों का ही फल है और इसी कारण यह दुख उठा रहा है ।

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शंकर जी के वचन सुनकर माँ पार्वती कहने लगी कि, हे जगदीश्वर आपको लोग भक्त वत्सल कहते हैं, दयालु कहते हैं फिर अपने भक्तों पर दया क्यों नहीं करते यह व्यक्ति बड़े भक्ति भाव से आपका पूजन करता है।

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फिर भी आप इसके दुख का निवारण नहीं करेंगे तो कौन करेगा क्योंकि आपको वेद शास्त्रो में आशुतोष अवधऱ दानी कहा गया है औऱ बाबा तुलसीदास जी नें भी अपनी रामायण में लिखा है कि,

“भावी मेति सकहि त्रिपुरारी जो तप करै तुम्हारि, तुम्हारी

इसलिए मेंरा आपसे निवेदन है कि विधि विधान को बदलकर इस पर कृपा करें। इस तरह माता पार्वती जी के कहने पर भगवान शंकर जी नें उसे पुत्र प्राप्त होने का वरदान दे दिया। यद्धपि उसके भाग्य में पुत्र का सुख नहीं था औऱ यह पुत्र केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा, इसके पश्चात वह म्रत्यु को प्राप्त हो जाएगा।

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इस तरह कुछ समय बीत जाने पर उस वैश्य को एक सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई और घर में बड़ी धूमधाम से खुशी मनाई गई और सभी लोग आनन्द को प्राप्त हुए। जब उस वैश्य पिता को यह मालूम पड़ा कि इस पुत्र की आयु 12 वर्ष ही है तो पुन: दुखित हो गया।

इस तरह से 12 वर्ष का समय व्यतीत हो गया और एक दिन की बात है उस पुत्र की माता अपने पति से विवाह के लिए कहने लगी तो पति नें विचार कर कहा कि अभी इसकी उम्र बहुत कम है। इसको अभी विद्या अध्ययन के लिए काशी जी भेजूंगा और उस वैश्य पिता नें लड़के के मामा को बुलाया औऱ बहुत सारा धन देकर अपने पुत्र को विद्या अध्ययन के लिए काशी जी भेज दिया ।

इस तरह से मामा भांजे रास्ते मे जगह-जगह पर ब्रह्म भोज करते हुए और यज्ञ करते हुए काशी जी के लए प्रस्थान कर दिया औऱ इस तरह से रास्ते में एक नगर मिला वहाँ के रानी की कन्या का उस दिन विवाह था।

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कन्या बहुत सुन्दर सर्वगुण सम्पन्न थी लेकिन जिसके साथ उस राजकुमारी का विवाह हो रहा था। वह वल्यकित काना था। इस बात की उसके पिता को बड़ी चिन्ता थी। लेकिन जब उस राजा नें उस रुपवान वैश्य के पुत्र को देखा तो उस राजा नें उसके मामा से प्रार्थना की, कि हे महोदय थोड़ी देर के लिए ये बालक मुझे दे दो, बड़ी कृपा होगी ।

मेंरी पुत्री का विवाह हो जाने के पश्चात हम इसे आपको वापस कर देंगे और इसके बदले आपको बहुत सारा धन भी देंगे। राजा की बात को बालक के मामा नें स्वीकार कर लिया। इधर उसको वर बनाकर मंण्डप में ले जाकर विवाह कार्य सम्पन्न करा दिया ।

परन्तु जब लड़का सिन्दूर दान करके लौटने लगा तो उस वधू की साड़ी के आँचल पर लिख दिया कि, हे भामनी तुम्हारा विवाह मुझ वैश्य के पुत्र से हुआ है। मैं काशी पढ़ने जा रहा हूँ।

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लेकिन जिसके साथ तुम्हें भेजा जाएगा। वह एक आंख का काना व्यक्ति है लेकिन विवाह तो मेंरा आपके साथ हुआ है, वास्तविक पति मैं हूँ। इस प्रकार जब राजकुमारी की विदाई का समय आया तो उसने अपनी साड़ी में लिखी हुई बात को पढ़ा औऱ सारी जानकारी प्राप्त की और इस तरह से अपने पिता से कहने लगी कि मैं इस राजकुमार के साथ नही जाऊंगी और मेंरी डोली वापस रख दी जाए। इस तरह से बारात लौट गई।

इधर मामा भांजे काशी जी में पहुँचकर वि्द्या अध्ययन प्रारम्भ किया औऱ अपने पिता के द्वारा दिए हुए धन से गुरुकुल में औऱ नगर में अनेक प्रकार के धार्मिक कार्य भी किए जा रहे थे।

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इस तरह से 12 वर्ष लड़के के व्यतीत हो गए औऱ ल़ड़के नें अपने मामा से कहा कि मैं सोने जा रहा हूँ। ऐसा कहकर वह सो गया परन्तु सोने के थोड़ी ही देर बाद उसके मामा नें जाकर देखा तो भांजे को मरा हुआ पाया। जिससे वह बड़े दुख को प्राप्त हुआ और जोर-जोर से रुदन करने लगा।

उसी समय भगवान शंकर माता पार्वती के साथ वहीं से निकल रहे थे। तभी माँ पार्वती जी नें वह करुणाभरी पुकार सुनकर उनका ह्रदय द्रवीभूत हो गया औऱ भगवान से कहने लगीं कि, हे कृपा निधान इस दुखिहारी पर आप कृपा करें औऱ चलकर के देखिये यह व्यक्ति क्यों रो रहा है तब पार्वती जी के ऐसा कहने पर शिव जी उस स्थान पर गए।

जहाँ मामा अपने भांजे को लेकर रो रहा था। तब तो पार्वती जी ने उस बालक को पहचान लिया औऱ भगवान शंकर जी से बोली कि, हे नाथ इतना सुन्दर बालक मृत्यु को प्राप्त हो रहा है जो आपके वरदान से पैदा हुआ है।

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इस पर भगवान बोले, हे देवि यह बालक अपनी आयु पूरी कर चुका है औऱ मृत्यु को प्राप्त हो गया है। इस पर पार्वती जी नें कहा कि, हे देवादि देव जिस तरह से आपने इसको 12 वर्ष की आयु दी थी। उसी तरह से जीवन-पर्यन्त इसकी आयु को पूर्ण जीवन दीजिए,नहीं तो ये बालक तो मर ही गया है।

इसके दुख में दुखी होकर इसका पिता भी मर जाएगा। ऐसा माता पार्वती के कहने पर दयालु भोलेनाथ ने उस बड़िक पुत्र को जीवित कर दिया। इस प्रकार शंकर पार्वती अपने धाम को चले गए।

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कुछ दिनों के पश्चात काशी नगरी से दोनो मामा भांजे अपने नगर की ओर प्रस्थान करते हैं और रास्ते में उसी नगर में आते हैं जिस नगर में राजकुमारी के साथ उसका विवाह हुआ था और वहाँ पहुँचकर बहुत बड़ा यज्ञ करके ब्राहमणों को दान दक्षिणा दिया और इस तरह से पंँण्डितों द्वारा राजा को मालूम हुआ कि काशी नगरी से कोई उद्योगपति का पुत्र आया है।

जिसने बहुत बड़ा यज्ञ करके ब्राहमणों क दक्षिणा देकर चला गया। ऐसी खबर मिलने पर उस वैश्य पुत्र के राजा नें रोक लिया औऱ बड़े आदर के साथ अपने राजमहल में ले आया और कुछ दिन रखकर औऱ पुत्री के सहित दान, दहेज के सहित उसको विदा कर दिया।

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जब वह वैश्य पुत्र अपनी पत्नी और मामा के साथ अपने नगर को चलने लगा तो रास्ते में मामा कहते हैं कि मैं आने की खबर पहले तुम्हारे घर में देता हूँ जिससे वधू के सहित तुम्हारे माता-पिता तुम्हारा स्वागत करें और मामा जब घर पहुँचते हैं तो इधर देखते हैं कि उस लड़के का पिता भी संकल्प करके पत्नी के सहित छत पर बैठे हैं

औऱ प्रतिज्ञा की है कि लड़का हमारा नहीं आएगा तो कूदकर जान दे देंगे। लेकिन जब साले ने बताया कि आपका लड़का कुशल-पूर्वक पत्नी के सहित आ रहा है। आप लोग उसका स्वागत करें।

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साले की ऐसी बात सुनकर वो वैश्य बड़ा प्रसन्न हुआ और बड़े आदर के साथ पुत्र एवं वधू का स्वागत किया और प्रसन्न होकर भगवान शिव का बड़े विधि विधान से पूजा वन्दना करने लगा।

इस तरह से जो मनुष्य भगवान शिव की भक्ति करते हैं और इस कथा को पढ़ते हैं औऱ सोमवार का व्रत रखते हैं उनके सभी जन्म जन्मांतरों के कष्टों को, पापों को भोले नाथ समन करते हैं औऱ सारे मनोरथों को पूरा करते हैं। इसलिए सभी को चाहिए कि सभी लोग भगवान शिव की पूजा करें और अपने मनोवांक्षित मनोरथों को प्राप्त करें।

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