ॐ का रहस्य तथा ॐ का विज्ञान,

हिंदू संस्कृति में ‘ॐ’ का उच्चारण अत्यंत पवित्र माना गया है। इस अक्षर का अर्थ है जिसका कभी क्षरण न हो। इसके उच्चारण में अ+उ+म अक्षर आते हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शंकर) का बोध कराते हैं और इनसे तीनों शक्तियों का एक साथ आहान होता है। ॐ ही समस्त धर्मों व शास्त्रों का स्रोत है।ॐ का महत्व , ॐ का ध्यान , के बारे में वेदों एवं शास्त्रों में भी विस्तार पूर्वक बताया गया है ।

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माना जाता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड में सदा ॐ की ध्वनि गूंजती रहती है। हमारे और आपके हर श्वास से ॐ की ध्वनि निकलती है। यही हमारे-आपके श्वास की गति को नियंत्रित करता है।

माना गया है कि अत्यंत पवित्रऔर शक्तिशाली है ॐ। किसी भी मंत्र से पहले यदि ॐ जोड़ दिया जाए तो वह पूर्णता शुद्ध और शक्ति – संपन्न हो जाता है। किसी देवी देवता, ग्रह या ईश्वर के मंत्रों के पहले ॐ लगाना आवश्यक होता है, जैसे, श्रीराम का मंत्र – ॐ रामाय नम:, विष्णु का मंत्र – ॐ विष्णवे नमः, शिव का मंत्र – ॐ नमः शिवाय, प्रसिद्ध है।

कहा जाता है कि ॐ से रहित कोई मंत्र फलदायी नहीं होता, चाहे उसको कितना भी जाप हो। मंत्र के रूप में मात्र ॐ भी पर्याप्त है। माना जाता है कि एक बार ॐ का जाप हजार बार किसी मंत्र के जाप से महत्वपूर्ण है।

ओम का दूसरा नाम प्रणव (परमेश्वर) है। “तस्य वाचक: प्रणव:” अर्थात उस परमेश्वर का वाचक प्रणव है। इस तरह प्रणव अथवा ॐ एवं ब्रह्मा में कोई भेद नहीं है।

भगवान श्री कृष्ण ने श्री गीता जी के आठवें अध्याय में कहा है-

                       ओमित्येकाक्षरं ब्रह्मा व्याहरन्मामनुस्मरन् |

                       यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम् |

अर्थात मन के द्वारा प्राण को मस्तक में स्थापित करके, योग धारण में स्थित होकर जो पुरुष ‘ॐ’ इस एक अक्षररुप ब्रह्मा का उच्चारण और उसके अर्थस्वरूप मुझ निर्गुणब्रह्मा का चिंतन करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह पुरुष परमगति को प्राप्त होता है।

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आगे वे श्रीमद् भगवतगीता के अध्याय 17 के श्लाेक 24 में कहते है कि वेदमंत्रो का उच्चारण करने वाले श्रेष्ठ पुुरूषाें की शास्त्रविधि से नियत यज्ञ, दान, और तपरूप क्रियाएं सदा ऊँ इस परमात्मा के नाम काे उच्चारण करके ही आरम्भ हाेती है ।

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ऊँ काे पूर्ण श्रद्धाभाव के साथ  ऊँचे दीर्घस्वर में उच्चारण करना चाहिये। इसके उच्चारण करने से ध्वनि में कंपनशक्ति पैदा हाेती है। भाैतिक शरीर के अणु – अणु पर इसका प्रभाव पड़ता है।

मन में एकाग्रता और शक्ति में जाग्रत हाेती है। वाणी में मधुरता आती है। शरीर में स्फूर्ति का संचार हाेता है। सभी संसारी विचाराें का लाेप हाे रहा है। आत्मिक बल मिलता है।

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सनातन धर्म ही नहीं, भारत के अन्य धर्म-दर्शनाें में भी ऊँ काे महत्व प्राप्त है।

गुरू नानक देव ने ऊँ के महत्व काे प्रतिपादित करते हुए लिखा है-

ओम सतनाम कर्ता पुरुष निभाैं निर्वेर अकालमूरत
यानि ऊँ सत्यनाम जपने वाला पुरूष निर्भय, बैर-रहित एवं
अकाल-पुुुरूष के सद्दश हाे जाता है।

 

 

 

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