जैसा कि हम सभी लोगो ने बचपन में कछुए और खरगोश की कहानी पढी और सुनी अवश्य ही होगी लेकिन इस कहानी ने समय के साथ एक नया रूप ले लिया है
कछुए ने स्वीकार की चुनौती
खरगोश जिसको अपनी तेज गति पर बहुत घमंड था वो जंगल में सब जानवरो के साथ रेस लगाने की शर्त रखता था लेकिन सारे जानवरों को उसकी गति का पता था इसलिए सारे जानवर उससे शर्त नही लगाते थे
परन्तु कछुए ने उसकी शर्त मान ली।
खरगोश की हार
रेस शुरू हुई खरगोश ने तेज गति से दौडना शुरू किया और कुछ ही समय मे वह कछुए से बहुत आगे निकल गया तब उसने पीछे मुड़कर कछुए को देखना चाहा
लेकिन वह दूर दूर तक नहीं दिखाई दिया,तब खरगोश ने थोडा विश्राम करने का निर्णय लिया और एक पेड के नीचे बैठकर आराम करने लगा।
खरगोश का विश्राम और हार
ठंडी हवा के झोंके मे खरगोश को कब नींद आ गयी पता ही नही चला।कछुए बिना किसी भी विश्राम के रेस मे चलता ही रहा। खरगोश जब तक दोबारा रेस मे दौड़ता तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कछुआ फिनिश लाइन पार कर चुका था।
इस से हमें यह सीख मिलती है कि हम छोटे छोटे और निरन्तर प्रयास से किसी भी कार्य को सफल बना सकतें हैं
कहानी अभी खत्म नहीं हुई है…
खरगोश ने दी दोबारा चुनौती और जीत गया
आत्म ग्लानि से पीडित खरगोश ने अपनी हार के कारणों की समीक्षा की और दोबारा उसने कछुए को रेस के लिए चुनौती दी।
कछुआ अपनी जीत से बहुत खुश था , उसने खरगोश की शर्त तुरन्त मान ली।
रेस शुरू हुई और खरगोश पूरी ताकत से दौड़ा, उसने कछुए को रेस मे बहुत बडे अन्तर से हराया।
- कहानी से सीख-तेज और लगातार चलने वाला,धीमे और निरन्तर चलने वालो से हमेशा जीत जाता है
यानी धीमे और लगातार होना अच्छा है लेकिन तेज और लगातार होना और भी अच्छा हैकहानी अभी खत्म नहीं हुई है……
अब सोचने की बारी कछुए की थी
इस बार कछुए ने खरगोश को रेस की चुनौती दी
और रेस का रूट कछुए ने अपने अनुसार ही चुना। - रेस शुरू हुई और खरगोश और कछुए ने अपनी अपनी पूरी ताकत झोंक दी इस रेस को जीतने के लिए ,खरगोश तेज गति से दौडा लेकिन रास्ते मे तेज बहाव वाली नदी पङी जिसको पार करना खरगोश के लिए नामुमकिन था।बेचारा खरगोश नदी किनारे ही बैठ गया।
थोड़ी देर बाद कछुआ आया और आराम से नदी पार कर गया और बहुत ही आसानी से यह रेस भी जीत लिय।कहाानी से सीख पहले अपनी ताकत को पहचाने और उसके अनुसार ही काम करे सफलता अवश्य मिलेगी।
अब खरगोश और कछुए ने एक दूसरे की खूबियो को अच्छी तरह से पहचान लिया था
कमल मिश्रा की कलम से